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खानाबदोश / दिनेश बाबा

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जहाँ पर धर छै वहीं पर घर छै।
आगू के कुछ भी नैं खबर छै।
ई छै घमक्कड़ थिर नैं रहथौं
हिनका पर केकर्हौ नैं नजर छै।
कल के नै हिनका छै चिन्ता
आज के भी कोय कहाँ फिकर छै।
खैलोॅ पीलेॅ रुकलोॅ जैथौं
कहीं सांझ तेॅ कहीं सहर छै।
बड़ा सरल हिनको छै जीवन
नहीं बनाय कहियो वें जहर छै।
कष्ट सहै छै सब मौसम के
ठंड गरम के कठिन पहर छै।
जन्मजात छै रमता जोगी
कहाँ कीाी होकरा कोय डर छै।
होय छै सब व्यवहार कुशल भी
सब लोगोॅ के करै कदर छै।
छोड़ि ठिकाना तुरते चलथौं
कभी गाँव तेॅ कभी नगर छै।

घरविहीन पर आशावादी
खुशी के मन में लोल लहर छै।
होय छै विविध गुणोॅ सें भरलोॅ
कलाकंत आरू वैश्वा नर छै।
कहाँ छै मंजिल वे की जानें
दिशाहीन पर लम्बी डगर छै
मानवता के गुण सें भूषित
प्यार भी बाँटे ठहर-ठहर छै।
जिनगी बिना रदीफ-काफिया
एक गजल जेकरा में बहर छै