खालीपन / लालित्य ललित
एक बुजु़र्ग
अलस्सुबह दिन
निकलने से पहले
सैर करता था
कई-कई मील की
पर
अब नहीं कर पाता सैर
घर से निकल
पार्क में आ बैठ जाता है
देखता है दाना चुग रहे हैं
पक्षियों को
उनकी कोमल हरकतों को
राम-राम का जवाब देता है
सैर करने वालों को
ख़ामोश बैठ जाता है
बुज़ुर्ग बाबा
क्या सोचता होगा
बुज़ुर्ग बाबा !
अपना अतीत
देख रहा है वर्तमान
सोचता होगा
पोतों का भविष्य
कितनी ही इच्छाएं
उसकी पूरी हो गईं
और कितनी होगी ?
- तेज़ आंधी चली
मौसम ख़राब हुआ
आज गली में भीड़ है
पता चला
बुजु़र्ग बाबा नहीं रहे !
जो देते थे हर बात का
जवाब
राम-राम बाऊजी !
अभी भी शब्द
घूम रहे हैं
शायद बेंच पर
बैठे होंगे बाबा
- मगर बेंच वहीं है
लेकिन
बाबा नहीं हैं
राम-राम बाबा
मैं ख़ाली पड़े उदास
बैंच को नमन् कर
आगे बढ़ जाता हूं ।