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खिंच आता है / सांवर दइया

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अंधेरा हो भी तो
टिक नहीं सकेगा
न रह सकेगा
रंग बदलकर ही

दिप-दिप करती लौ का-सा
उजास जो है
तुम्हारे अंग-अंग में

यह कौंध ही तो
रास्ता दिखाती है
फिर उधर ही खिंच आता है
मन-पतगा मेरा !