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खिलखिलाती हँसी / अनुभूति गुप्ता

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सुदूर एकान्त में
खिलखिलाती हँसी ठिठुरती है
बेचैनी से चिड़चिड़ी हो चुकी है
आज़ादी की खोज में है
कि:
किसी के चेहरे को
   अपेक्षा होगी
उसे होठों से लगाने की।
खिलखिलाती हँसी
अपने नगर लौटेगी
तो,
देह पर नहीं तनेंगे
करूणा के काँटे।
घोर निराशा के
अँधियारे से
अन्तस नहीं घिरेगा
और-
प्रफुल्लित तन-मन होगा
जालीदार झरोखे से
उजियारा
स्थिरता से झाँकेगा।