खींचने को तो नहीं आएँगे / साहिल परमार
घी और दूध है
तुम को खाना
पशु जीवित हो
तब तक उस का रसकस पाना
मुर्दा बचे निकम्मा तब ही
खींचने को फिर हमें बुलाना
वह भी जैसे दान किया हो
इस तरह से कहते कहते :
'ले लो, चूतियों
ले जाओ इस को
चोखने भेजा
गुल्ली खाने
कर के चानी सेक पकाने
चमड़ा धो
बाजार में बेचो
ले लो, चूतियों
ले जाओ, इसको
कब तक ऐसा सुनोगे, साथी?
कब तक ऐसा रहोगे सुनते?
उन सालों से
कह दो कि हम
नहीं आएँगे
चोखना भेजा
खाना तोकड़ा
चानी करके तुम ही खाना
तुम ही कुण्ड में छब-छब करना
बेचना चमड़ा
बेच के पैसा
खूब कमाना।
जाओ, चूतियों, नहीं आएँगे
पशु उठाने नहीं आएँगे
खींचने को हम नहीं आएँगे
जो भी हो तुमसे, कर लेना
खींचने को हम नहीं आएँगे।
फेंक दो, बन्धु आर छुरी और
मटुकी छाछ मटकी फोड़ ही डालो
ले के हँसुए रहो मुकम्मिल
सर उन के बस फोड़ ही डालो
आँतें उन की खींच ही डालो
हड्डियाँ उन की तोड़ ही डालो
चीर ही डालो
कीमा कर कुत्तों को डालो
साले, क्या समझे हैं हमको
भात-कढ़ी के खानेवाले।
कुछ ना कर पाओ
हर्ज नहीं है कुछ
पशु उठाने कभी न जाओ
मरना पड़े, तो मर भी जाओ
खींचने को, पर कभी न जाओ
पशु उठाने कभी न जाओ
मूल गुजराती से अनुवाद : स्वयं साहिल परमार