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खुद को पाया तन्हा जब भी / ईशान पथिक
Kavita Kosh से
खुद को पाया तनहा जब भी
बस किया यही एक काम
लिखा किया मैने छिपकर
एक गजल तुम्हारे नाम
इस भीगी सी तनहाई में
याद तुम्हारी होती संग
मेरे रूखे से मन में भी
भर जाती जाने क्या उमंग
अब मन ही मन मुस्काने को
हुआ गली गली बदनाम
लिखा किया मैने छिपकर
एक गजल तुम्हारे नाम
मेरे इन गीतों को जो कभी
आवाज तुम्हारी मिल जाए
इनमें से खुशबू बिखर उठे
सांसों मेंं चंदन घुल जाए
तुम राग में ढालो जो इनको
मेरे गीत न हो गुमनाम
लिखा किया मैने छिपकर
एक गजल तुम्हारे नाम
हो दूर तुम्हारी आंखों से
देखो कितना मैं भटका हूं
पा ही लूंगा तुमको एक दिन
इस एक आस पर अटका हूं
मन में अपने ही रख लो तुम
बस यही है मेरा मकाम
लिखा किया मैने छिपकर
एक गजल तुम्हारे नाम