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खुशियां / हिमानी
Kavita Kosh से
खुशियां नहीं जानतीं किस मौसम में खिलते हैं फूल
और किस मौसम में पत्ते झड़ते हैं पेड़ों से
किस मौसम में बारिश लाते हैं बादल और
किस मौसम में हो जाती है बिना बादलों के ही बरसात
किस मौसम में कोहरे और धुंध की चादर में लिपट जाता है हर इंसान
और किस मौसम में हवाएं चलती हैं अपनी सबसे तेज चाल
खुशियों को कुछ मालूम नहीं होता
वो अपने वक्त से आती हैं
वक्त हो जाने पर बिना देरी किए चली जाती हैं
जैसे इस बार आया है वसंत मगर खुशियां नहीं आईं
वो आईं थीं उस वक्त जब मौसम बहुत उदास था।