खुसी / चंद्रदेव यादव
बहुत दिना पर
आज घरे में थरिया बाजल ह
बहुत दिना पर
बखरी क तकदिरिया जागल ह l
आज कलउती के कोखी
कुलदीपक जनमल ह
रान-परोसिन देत ममरखी
' आज बहुत दिन पर पथरे पर
दुभुड़ी जामल ह l'
भीत-बँडेरिया हुमसैं
आछर-गूछर भइलैं लइका
अंगने फूलल चान क फुलवा
बहुत दिना पर आज अमावस
घर से भागल ह l
सास छोहा के लड्डू बाँटैं
परजुनियन के नेग देइ के
बड़े जतन अछवानी पकवैं
भुइयाँ गोड़ परे ना, रहि-रहि
नतिनिन के ऊ मारैं, डपटैंl
सउरी पड़ल कलउती सोचे
एक्कै कोख से बेटबा-बिटिया
काहें बिटिया होलीं माहुर
आउर बेटवा होलैं जाउर?
एक प एक बिटियवै भइलीं
हम हो गइलीं कउवाहँकनी
ऊठत-बइठत जवन सास मोर
ताना मारें, पुरखा नेवतैं
ओकरे बदे आज हम भइली
रजरानी, इमरित क ढकनी l
मनवैं मन ससुई गुनैले
देवतन–दानी के पूजा से
ई दिन हमरे घर में आइल
तुलसी चउरा, डीह के पुजलीं
नेम-धरम से दीया बरलीं
जल-अच्छत, कनइल-अढ़उल क
फूल चढ़उलीं
नरियर-चुनरी गंगा जी के
हलुआ-पूड़ी कुल देवतन के
खूब खियउलीं, होम करउलीं
तब जाके राजगज बखरी में l
सालन से बिसमाधल बेटवा
हुलस-हुलस के, दुअरे जाके
बड़-बढ़इत क गोड़ लगेला,
भाई-बंद से करजा लेके
छट्ठी-बरही क सोचेला,
दर-दयाद के घरे जाइ के
अहथिर से समझे-बूझेला l
ईहै होला जग में सगरेव
घर में जब लइका जनमैं त
सगरी दुनिया खुसी मनावै
समरथ भर धन-धान लुटावै,
बिटिया के दाईं ईहै जग
अपनी मेहरी के गरियावै
ई संसार न जानत कब्बों
इतिहासन के हर पन्ना पर
मेहरारुन क पीड़ा
एक करिया धब्बा ह
सब केहू अनजाना बाकी
मरद आउर मेहरारू एके
खुसी-खुसी गावैं–दोहरावैं l