भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

खून की नदी / मथुरा प्रसाद 'नवीन'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ओ देखो!
पंचवर्षीय
योजना के नाव,
अपैत के रोटी
लठैत के दाव।
के नै धूकऽ हइ?
सब के
माथा पर
कुरसिये के कुत्ता भूकऽ हे।
ई झाँव-झाँव में
ई काँव-काँव में
के सुनतो तोहर कुहरल बोली,
सुन के लगऽ हो
कि हमहूँ खोलियो
तोरा साथ खून के होली।
फक-फक
उड़न खटोली पर चढ़ो,
अउ
एकइसवीं सदी दने दौड़ के बढ़ो।
एकइसवीं सदी,
कहाँ देखला हे
खून के नदी?