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खूब रोया एक सूखा पेड़ / प्रमोद तिवारी
Kavita Kosh से
याद कर
अपनी सघन छाया
खूब रोया
एक सूखा पेड़
पेड़ जिसकी छांव से
हारे थके रिश्ते जुड़े
पेड़ जिसकी देह से
होकर कई बादल उड़े
कह रहा है राख होना है
फूल हो
या एक सूखा पेड़
हर पखेरू चाहता है
डाल पर पत्ते घने
और उनकी ओट में
घर के लिए तिनके बुनें
किन्तु मौसम ने
नहीं सोचा
और बोया
एक सूखा पेड़