भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
खेत में काम वो करती जाती / ओमप्रकाश यती
Kavita Kosh से
खेत में काम वो करती जाती ध्यान में रखती चूल्हे को
मुड़-मुड़ कर फिर देख भी लेती धूप में सोए बच्चे को
किसकी ख़ातिर कौन जिया है किसकी ख़ातिर कौन मरा
क़समें खाने वालों ने भी कब समझा इस जज़्बे को
योगी –सन्त किसे हम मानें किसकी बातें सुनने जायं
काले धन्धे तक करते हैं लोग पहन इस चोले को
कुछ मौक़े ऐसे भी आए जब मुझको एहसास हुआ
संगी-साथी सब मतलब के, रिश्ते - नाते कहने को
प्यार ही मक़सद हर मज़हब का प्रेम ही सब धर्मों का सार
लिखने वाले लिखते आए कौन पढ़े इस पन्ने को