भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
खेती का फल तुम्हारे अधीन / कालिदास
Kavita Kosh से
|
त्वय्यायत्त कृषिफलमिति भ्रूविलासानभिज्ञै:
प्रीतिस्निग्धैर्जनपदवधूलोचनै: पीयमान:।
सद्य: सीरोत्कषणमुरभि क्षेत्रमारिह्य मालं
किंचित्पश्चाद्ब्रज लघुगतिर्भूय एवोत्तरेण।।
खेती का फल तुम्हारे अधीन है - इस उमंग
से ग्राम-बधूटियाँ भौंहें चलाने में भोले, पर
प्रेम से गीले अपने नेत्रों में तुम्हें भर लेंगी।
माल क्षेत्र के ऊपर इस प्रकार उमड़-
घुमड़कर बरसना कि हल से तत्काल खुरची
हुई भूमि गन्धवती हो उठे। फिर कुछ देर
बाद चटक-गति से पुन: उत्तर की ओर चल
पड़ना।