भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
खेल / लीलाधर जगूड़ी
Kavita Kosh से
बहुत-कुछ अपने जैसा जन्मते ही जो एक आदमी
लीलाधर जगूड़ी नहीं था--वह मैं हूँ
मेरा जन्म ही कठोर कारागार है
--जन्म ही कठोर कारागार है
--मैं जन्म से ही कठोर कारागार में हूँ
क़ैदियों को भी प्यार की ज़रूरत है ये कब से कहा जा रहा है
पहले यहाँ मेरे पिता फँसे
--जब मैं आया वे जेलर बन गए
तब से मेरे दाएँ हाथ का काम
उनके बाएँ हाथ का खेल हो गया ।