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खेल भावना / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
एक सड़क पर मक्खी मच्छर,
बैठ गये शतरंज खेलने|
थे सतर्क बिल्कुल चौकन्ने
इक दूजे के वार झेलने।
मक्खी ने जब चला सिपाही,
मच्छर ने घोड़ा दौड़ाया|
मक्खी ने चलकर वजीर को,
मच्छर का हाथी लुड़काया।
मच्छर ने गुस्से के मारे,
ऊँट चलाकर हमला बोला|
मक्खी ने मारा वजीर से,
ऊँट हो गया बम बम भोला।
ऊँट मरा जैसे मच्छर का,
वह गुस्से से लाल हो गया|
मक्खी बोली यह मच्छर तो,
अब जी का जंजाल हो गया|
मच्छर ने तलवार उठाकर,
मक्खीजी पर वार कर दिया|
मक्खी ने मच्छर का सीना,
चाकू लेकर पार कर दिया|
मच्छर औ मक्खी दोनोँ का,
पल में काम तमाम हो गया|
देख तमाशा रुके मुसाफिर,
सारा रास्ता जाम हो गया।
खेल हमेशा खेल भावना
से मिलकर खेलो भाई,
खेल खेल में लड़ जाने से
होती बच्चो नहीं भलाई।