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खेलत ग्वालन सँग दो‌उ भैया / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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खेलत ग्वालन सँग दो‌उ भैया।
नटवर वेष बने अति सुन्दर, चलीं जाति आगे सब गैया॥
नव-पल्लव-बन-धातु-विभूषित, पुष्पहार-गल, निपुन नचैया।
मोर-पिच्छ-गुच्छन सों सोभित नाचत ताल सहित सरसैया॥
सींग-बाँसुरी मधुर बजावत गावत सबके साथ कन्हैया।
ताल ठोंकि मल्ल‌ई करत सब एक एक को मन रिझवैया॥
क्रीठडत बिबिध भाँति मोहन बन करत हर्ष-धुनि ’हैया-हैया’।
ग्वाल-बाल को रूप धारि, सुर धन्य-धन्य कहि लेत बलैया॥