भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

खेलते मिट्टी में बच्चों की हंसी अच्छी लगी / वशिष्ठ अनूप

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

खेलते मिट्टी में बच्चों की हंसी अच्छी लगी
गाँव की बोली हवा की ताज़गी अच्छी लगी।

मोटी रोटी साग बथुवे का व चटनी की महक
और ऊपर से वो अम्मा की खुशी अच्छी लगी।

अप्सराओं की सभा में चहकती परियों के बीच
एक ऋषिकन्या सी तेरी सादगी अच्छी लगी।

सभ्यता के इस पतन में नग्नता की होड़ में
एक दुल्हन सी तेरी पोशीदगी अच्छी लगी।

दिल ने धिक्कारा बहुत जब झुक के समझौता किया
जु़ल्म से जब भी लड़ी तो ज़िन्दगी अच्छी लगी।