खेलैते धूपैते रहिऐ सुपती मउनियाँ / अंगिका लोकगीत
प्रस्तुत गीत में बेटी दिन भेजने वाले, दिन रखने वाले, विदाई तथा दान-दहेज की तैयारी करने वालों को निर्दय तक कह देती है। केंकि, वह अपने को अबोध बालिका समझ रही है, जिसके खेलने-खाने के दिन अभी गये नहीं। जब वह विदा होकर घर से दूर चले जाने पर पालकी का ओहार उठाकर देखती है, तब उसे पता चलता है कि पिता का राज्य तो पीछे ही छूट गया। इस गीत के अंतिम पद में आंतरिक वेदना अंतर्निहित है।
खेलैते धूपैते रहिऐ सुपती मउनियाँ, आइ गेलै गवना के दीन हे॥1॥
कौने निमोहिया रामा दिनमा पठौलै<ref>पठाया; भेजा</ref> कौने निरमोहिया मानी लेल हे।
कौने निरमोहिया रामा डोलिया तनौलै<ref>तनाया</ref>, कौने निरमोहिया लेने जाय हे॥2॥
सामी निरमोहिया रामा दिनमा पठौलै, बाबा निरमोहिया मानी लेल हे।
भैया निरमोहिया रामा डोलिया तनौलै, सामी निरमोहिया लेने जाय हे॥3॥
कौने मोरा साँठलनि<ref>लड़की की विदाई के समय, उसके साथ विभिन्न महिलोपयोगी सामग्री को सँभालकर भेजना</ref> पौंती पेटरिया<ref>बाँस और सींक की बनी हुई पिटारी</ref> कौने निरमोहिया धेनु गाय हे।
कौने मोरा साँठलनि लौंग इलैंचिया, कौने मोरा साजलनि भार हे॥4॥
अम्माँ मोरा साँठलनि पौंती पेटरिया, बाबा मोरा साँठलनि धेनु गाय हे।
भौजो मोरा साँठलनि लौंग इलैंचिया, भैया मोरा साजलनि भार<ref>बहँगी, बाँस के फट्टे के दोनों छोर पर छींका लटकाकर बनाया हुआ बोझढोने का साधन</ref> हे॥5॥
एक कोस गेलै डाँरी दुई कोस गेलै, चलि गेलै जमुना किनार हे।
ओहार केरिए जबे ताकलनि<ref>देखा</ref> बेटी जानकी, छुटि गेलै बाबा केरा राज हे॥6॥