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खो गयी है सुई / कुमार रवींद्र
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गुंबजों का शहर
सीढ़ियों का शहर
अक्स हैं धूप के -आयने जादुई
राह सीधी नहीं
हर सडक मुड़ रही
बंद दीवार से
जानकर जुड़ रही
अजनबी भीड़ जलसे में शामिल हुई
चींटियों की तरह
लोग चलते रहे
पार मीनार के
रोज़ ढलते रहे
पीठ पर हैं गदेले
रुई से भरे
हर गली में मिले
हाँफते आसरे
खोजते ही रहे रोशनी अनछुई
फूस के ढेर में खो गयी है सुई