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खोई हुई चीज़ों की नज़्म / मदन कश्यप

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शायद अब वह अंतड़ियों से भी ज्यादा लंबी हो गई हो
फिर भी मेरी स्मृति के छोटे से कोने में रहती है
खोयी हुई चीजों की एक गुड़मुड़ी फेहरिस्त
जैसे पाँच फुट आठ इंच लंबे शरीर में
रह लेती हैं मीलों लंबी नसें

वैसे खामख्वाह कुछ खोते रहने की आदत नहीं है
कोशिश करता हूँ कि रहूँ चाक-चैकस
केवल जरूरी चीजें ही ले जाता हूँ यात्रा में
जाने से पहले अपने बक्स
तथा लौटने से पहले कमरे का अच्छी तरह मुआइना करता हूँ
फिर भी कभी-कभी कोई गलती हो ही जाती है

पत्नी कहती है कि बेषऊर हूँ
बटन लगाना तक भूल जाता हूँ
कभी-कभी बस या ऑटो में चलते हुए
चला जाता हूँ एक-दो पड़ाव आगे

पैसों के खोने का हिसाब नहीं है
उन्हें तो रहना नहीं होता
खोते नहीं तो खर्च हो जाते हैं

मुझे लगता है भूलता बहुत हूँ इसीलिए खोता हूँ
परंतु कुछ खोना ऐसा होता है जिसे भूल नहीं पाता

खोने का दुख अक्सर छोटा होता है
मगर कभी-कभी बहुत लंबा भी होता है
एक बार जब घर में केवल एक ही छाता था
मैंने खो दिया और खुद यात्रा पर चला गया
तब पत्नी को बेटे की दवा के लिए
बारिश में भींगते हुए डिस्पेंसरी जाना पड़ा
आप कहीं बारिश में घिर जाएँ और भींगते हुए
घर लौटें उसकी बात और है
लेकिन आप उस वेदना की कल्पना नहीं कर सकते
जो छाते के अभाव में घर से भींगते हुए निकलने से होती है
मैं अपनी पत्नी की बारिश से ज्यादा अपमान में
भींगते हुए चेहरे की कल्पना करके अब भी डर जाता हूँ

कभी-कभी हम व्यर्थ की चीजों के लिए बेचैन होते हैं
बचपन में स्कूल में याददाश्‍त बढ़ाने की दवा खरीदी थी
दो रूपए की पूरी दवा कहीं खो गई
मैं बहुत रोया-चिल्लाया
और अपने छोटे भाई की फजीहत भी की
तब मुझे लग रहा था कि मैं याददाश्‍त बढ़ाने की
एक महान अवसर से वंचित हो गया
अब उसे याद करके शर्म आती है और भाई के प्रति
जो अब इस दुनिया में नहीं है
अपने व्यवहार के लिए दुख होता है

कुछ खोना सुई की चुभन जैसा होता है
जिसमें दर्द बहुत तेज उठता है पर जल्दी मिट जाता है
जैसे चाबी का गुच्छा खो जाना
कलम खो जाना
चश्‍मा खो जाना
डॉक्टरी पर्ची खो जाना
किशोरी अमोनकर का कैसेट खो जाना
वैकल्पिक व्यवस्था के साथ ही
खत्म हो जाता है खोने का गम

परंतु, कुछ ऐसा खोना भी होता है
जो नासूर की तरह टपकता रहता है
और बिलआखिर छोड़ जाता है एक गहरा निशान

मैंने कई बार ऐसी चीजें खोयी हैं
जो फिर मुझे कभी नहीं मिलीं

किताबों का खोना बिल्कुल अलग तरह का मामला है
अक्सर किताबें खोती नहीं टपा दी जाती हैं
कई बार हम टपानेवाले को जानते होते हैं
पर कुछ कर नहीं पाते

मैंने चीजें खोयी हैं
बहुत-बहुत चीजें खोयी हैं
मगर चीजों से ज्यादा अवसर खोया है
यह चीजों के खोने की कविता है
अतः अवसरों के खोने का ब्यौरा नहीं दूँगा
पर कई बार अवसर भी चीजों की तरह होता है
अथवा चीजें अवसर की तरह होती हैं

पता नहीं तब मैंने चीज खोयी थी या अवसर खोया था
पर एक खोना ऐसा भी है
जिसे मैं अब भी अतीत में लौटकर
पा लेने के लिए बेचैन हो जाता हूँ

वे लोग कुछ नहीं खोते जो समय की अंगुलियों पर नचाते हैं
खोना मुझ जैसों के हिस्से होता है जिन्हें समय नचाता है

अब खोने की कविता इतनी भी लंबी नहीं होनी चाहिए
कि पाठकों को अपना धैर्य खोना पड़े
सो समाप्त करता हूँ
वैसे भी खोने की चर्चा क्या करना एक ऐसे समाज में
जिसने अपना गौरव खो दिया हो!