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ख्वाब से फ़ासले हो गये / रंजना वर्मा

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ख्वाब से फ़ासले हो गये
दर्द के सिलसिले हो गये

बढ़ गईं इस कदर दूरियाँ
गैर के ज्यों पले हो गये

बाद मुद्दत निगाहें मिलीं
कितने शिकवे गिले हो गये

दिल मिले दूध जल की तरह
बेवज़ह फ़ासले हो गये

ठोकरें इस तरह से लगीं
जख़्म सारे खुले हो गये

फूल से थे जो नाजुक बदन
सब दरख़्तों तले हो गये

कुर्सियाँ जब जिन्हें मिल गयीं
दूध के वो धुले हो गये

दुश्मनों से रहे बाख़बर
दोस्तों से छले हो गये

आईना इतना धुन्धला हुआ
अक्स सब झिलमिले हो गये