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गँहकी / नवीन ठाकुर ‘संधि’
Kavita Kosh से
बिहा करी केॅ तेॅ हमरोॅ भाय भौजाय गेलोॅ तरी,
लगले हमरोॅ माय बाप गेलोॅ मरी।
रही गेल्हाँ आबेॅ हम्मी बांकी,
हमरा लेली कोय नै आबेॅ गँहकी।
नाना-नानी ने लगैलकोॅ शादी,
आबेॅ हमरोॅ भाग गेलोॅ जागी।
हमरा मिलतोॅ इन्द्राशनोॅ रोॅ परी।
हम्में जाय लागल्हाँ दौड़ी-दौड़ी ससुरार,
हमरा देखतैं सरोजनी खूब ठोकेॅ कपार।
नानी कहै हमरा बात खरी,
घोॅर बाहर सब्भेॅ दुसटोॅ कोय नै-लै-छेॅ दुःख बाँटी.
मन्नेॅ-मन्नेॅ सोचियै कथिल आयल्हाँ धौ तुरी,
बिहा करी केॅ तेॅ हमरोॅ भाय भौजाय गेलोॅ तरी।
हम्में चल्लोॅ जाय छी पतितोॅ होय केॅ,
मतुर, घरनी देखेॅ हमरा तीतोॅ होय केॅ।
बड़ी बरजातिन छेलै हौ मोटी-नांटी,
सुरसुराय लागै जेनां सरसों तेल खांटी.
"संधि" औकताय गेलै आगू-पीछू करी।