भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गंगा / अमरेन्द्र
Kavita Kosh से
गंगा जो भारत की गति है, मुक्ति कथा भारत की
युग-युग से हरती आई है घोर व्यथा भारत की
और कौन है पतितपावनी गंग यथा भारत की
मोक्षदायिनी माता गंगा; पुण्य प्रथा भारत की ।
चन्द्रकांत नख में निवास जो करती है सुरसरिता
ब्रह्मा का ब्रह्माण्ड रिक्त जो भरती है सुरसरिता ।
व्योमकेश में वही विचरती रहती है सुरसरिता
जो कि सगर पुत्रों के विष को हरती है सुरसरिता ।
उस माता का कौन दनुज-दल शील हरण करता है
माँ के आँचल को कलियुग के पापों से भरता है
उसे ज्ञात क्या, ऐसा करके सत्युग को हरता है
वह कैसा है घोर अधम जो पुण्यों को चरता है ।
गंगा तो है प्राण वायु भारत के कोटि जनों की
भारत की ही नहीं जननी, यह तीन लोक-भुवनों की ।