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गंगा का है लड़कपन गंगा की है जवानी / नज़ीर बनारसी
Kavita Kosh से
गंगा का है लड़कपन गंगा की है जवानी
इतरा रही हैं लहरें शरमा रहा है पानी
दोहराए जा रही है बरसात की कहानी
बीते हुए ज़माने गुज़री हुई कहानी
रुक-रुक के चल रही है बरसात की कहानी
थम-थम के बढ़ रही है दरियाओं की रवानी
बादल बरस रहा है बिजली चमक रही है
खिलवाड़ कर रहे हैं आपस में आग पानी
जाओ ख़ुशी से लेकिन जाती हुई घटाओ
हर साल आ के भरना तुम साल भर का पानी
जैसे बजा रहा है उस पार कोई बंसी
सतरंगी सारी बाँधे नाचे है रुत सुहानी
पानी बरस रहा है निकलो 'नज़ीर' घर से
हम-तुम भी तो लें अपने हिस्से की ज़िन्दगानी ।