भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गजस्तत्र न हन्यते / त्रिलोचन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बचपन में सुनी थी कहानी यह
कहानी अच्छी लगी
मैंने भी कहानी वह
कई जगह कही

एक शेरनी को बच्चा होने को था
कुछ भी न था कि खाया जाए
शेर को बुला कर उसने कहा
जंगल में जाओ, अहेर में जो भी मिले, लाओ
शेर को और कुछ तो नहीं मिला,
मिला स्यार का एक बच्चा
शेर नें नन्हे स्यार को नहीं मारा
शेरनी को सौंप दिया
शेरनी नें भी उसे बचा लिया
काल पा कर शेरनी को दो बच्चे हुए
इन दोनो को माँ से समझा दिया, वह बड़ा भाई है
तुम्हारा, उसका आदर करना
तीनों खेलने गए, ज़रा दूर एक हाथी दिखा
शेर बच्चे उसपर झपटने को हुए
उसपर बड़ॆ भाई नें डाँटा और घर ले गया।
बच्चों से घटना जान कर पालतू बेटे को
अलग ले जा कर समझाया--
तुम वीर हो, काम में दक्ष हो,दर्शनीय हो
जिस कुल में तुम जनमे हो वहाँ हाँथी नहीं मारते।

30.09.2002