गणतंत्र दिवस / निर्मल कुमार शर्मा
रात रा ईगियारा बजिया हा
नेताजी सोच में पजिया हा
बात नाक री जावे ही
आ सोच नींद ना आवे ही
जड़ बैचेनी बढ़ने लागी
तो टेलीफोन घुमायो
अर पी ऐ ने बुलवायो
बोल्या, 26 जनवरी है काले
अर, मन्ने भाषण देनो है
झंडो तो मैं फेरा द्युंगो
पण बता सरी, के कहनो है
बो बोल्यो सेवक हूँ थांरो
नयो-नयो मैं पी ऐ हूँ
दसवीं फेल हो
थांरी किरपा सू ही
तो अब बी. ऐ. हूँ
उगत नहीं इत्ती महा में
क्या थाने बतलाऊँ
रात हो गयी घनी
बताओ, कठ स्यूं मेटर ल्याऊं
इन बारे घनी नहीं जानूं
पण इत्ती लोग बतावे है
थांरे जेदो कोइ मोटो
नेता सभा में आवे है
नेताजी कद्क्या, चुप बावलिया
या तो मने खबर है रे
मैं सोच्यो, चोखो भाषण लिख देसी
पण तूं तो नीरो दफर है रे
अब बगत रे गयो है थोड़ो
तूं और करे है क्यूँ मोड़ो
कीं पध्या-लिख्या ने बुलवा ले
अर, चोखो भाषण लिखवा ले
अब पी ऐ ताबड़-तोड़ करी
अर, पध्या मिनख घर दौड़ भरी
पी ऐ ने घर रे बार देख
बो सोच्यो, किस्मत जाग गयी
आधी रात होयां पर भी
आंख्यां सू,नीन्दद्ली भाग गयी
बोल्यो,तकलीफ करी था क्यूँ
मैं खुद ही हाजिर हो जातो
भाषण री थें क्या बात करो
पूरो संविधान ही लिख लातो
फिर पूछ्यो, म्हारो काम तो हो जासी
बाबू लगवा दो या चपरासी
उम्र भर थांरा गुण गासूं
नींतर भूखों मर जासूं
ज्यूँ औरां ने टरकातो हो
पी ऐ इनने भी टरकायो
अर, खुद रो काम बना ल्यायो
दिन दिन उगियो, मिन्दर में झालर बाजन बाजण लाग्या
मोटा बंगला में
घड़ियाँ रा अलारम भी बाजण लाग्या
नेताजी रे