गणतंत्र में मौत / दिनकर कुमार
आख़िरी बार वह कातर स्वर में चीख़ा था, माँ...
तब शाम उतर रही थी जब एक
वाहन में उसे ठूँस कर ले जाया गया था
वह एक सुबह थी
जब उसकी लाश क्षत-विक्षत हालत में सड़क पर पड़ी थी
अलग-अलग आशंका और अंदाज़े की कसौटी पर
हत्या के प्रति हम बनाते हैं दृष्टिकोण
हमने बाज़ीगरों को देखा है जो
हवा में हाथ लहराकर शान्ति और सद्भाव
पैदा करते हैं और फिर ग़ायब कर देते हैं
तांत्रिकों को देखा है जो
हर मृत्यु की सूचना पर भावविहीन होकर
तस्वीरें खिंचवाते हैं और
रोगियों का इलाज झाड़-फूँक कर करते हैं
गणतन्त्र अब तांत्रिकों के लिए ही बचा है
जो जानते नहीं तंत्र या मंत्र
जो पूछते हैं असाधारण सवाल
जो भूख और सरकार के बारे में
पैदा करते हैं संशय
उन्हें इसी तरह एक-एक कर
घर से खींचकर बाहर किया जाता है
मुर्दागाड़ी में ठूँस दिया जाता है ।