गणतन्त्र दिवस क्या होता है / हरेराम बाजपेयी 'आश'
इने भी तो पूछ के देखो,
गणतन्त्र दिवस क्या होता है।
पेट-पीठ मिल एक हो रहे,
शेष रहा तन हड्डियों का ढांचा,
रोटी के टुकड़ों के खातिर,
कितने दरवाजों पर नाचा,
मेहनत से जो महल बनाता,
वह फुटपाथों पर सोता है,
इस बेघर मजदूर से पूछो,
गणतन्त्र दिवस क्या होता है।
कैसे कैसे कष्ट सहन कर,
बेटा पढ़ता है गरीब का,
डिगरी लेकर भटके दर-दर
कैसे बयाँ करूँ उसके नसीब का,
बिना सिफ़ारिश के बेचारा,
विधा की अर्थी ढोता है,
इस उपाधि धारक से पूछो,
गणतन्त्र दिवस क्या होता है।
है अजीब मौसम भारत का,
कभी बाढ़ तो कभी है सूखा,
गोदामों में अन्न सड़ रहा,
देश का कृषक सो रहा भूखा
जो भारत का पेट भर रहा,
उसका सूट भूखा सोता है,
इस मजदूर किसान से पूछो
गणतन्त्र दिवस क्या होता है।
गुंडे बने सफ़ेद पोश है,
आम सड़क चल रही गोलियाँ,
कम दहेज के कारण अब भी,
मां बहनों की जल रही होलियाँ
थानों पर लूट रही बेटियाँ,
मां भारत का आँचल रोता है,
इन बेबस अबलाओं से पूछो,
गणतन्त्र दिवस क्या होता है॥