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गम्भीरा के चित्तरूपी निर्मल जल में / कालिदास
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गम्भीराया: पयसि सरितश्चेतसीव प्रसन्ने
छायात्मापि प्रकृतिसुभगो लप्स्यते ते प्रवेशम्।
तस्यादस्या: कुमुदविशदान्यर्हसि त्वं न धैर्या-
न्मोधीकर्तु चटुलशफरोद्वर्तनप्रेक्षितानि।।
गम्भीरा के चित्तरूपी निर्मल जल में तुम्हारे
सहज सुन्दर शरीर का प्रतिबिम्ब पड़ेगा ही।
फिर कहीं ऐसा न हो कि तुम उसके कमल-
से श्वेत और उछलती शफरी-से चंचल
चितवनों की ओर अपने धीरज के कारण
ध्यान न देते हुए उन्हें विफल कर दो।