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गरमी / पंकज चौधरी
Kavita Kosh से
भीषण गरमी है
आग के गोले बरस रहे हैं
पत्ता तक नहीं हिल रहा
पाताल भी सूख गया होगा
पिछले पच्चीस सालों का रिकार्ड भंग हो रहा है ...
बड़े-बूढ़ों की गरमी
ऐसे ही निकल रही थी
और दूधमुंहे बच्चों की गरमी
घमोरियों में निकल रही थी!