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गरमी जी / गिरीश पंकज

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गरमी जी, ओ गरमी जी,
क्यों इतनी बेशरमी जी ।
पी लो थोड़ा ठण्डा पानी,
ले आओ कुछ नरमी जी,
गरमी जी, ओ गरमी जी,

आये हैं गरमी से लड़ने,
ऐंठ रहे हैं देखो मूँछ ।
एक तरफ़ खरबूज खड़े हैं,
एक तरफ मिस्टर तरबूज ।

गरमी करती है शैतानी,
मगर ख़ूब जो पीते पानी ।
उनको न होती परेशानी,
बात कहे ये अपनी नानी ।