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गरमी बढ़ी गेलै बड़ी / मुकेश कुमार यादव

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कुछ मुरझाय।
कुछ बौराय।
आम गिरी, जाय छितराय।
केना कटतै।
मुश्किल घड़ी।
गरमी बढ़ी गेलै बड़ी।
कोमल कली।
बेली-चमेली।
गरम लू झेली।
धूप-छांव।
आंख-मिचौली खेलै।
दिन गेलै चढ़ी।
गरमी बढ़ी गेलै बड़ी।
ऐंगना में धूप।
देखाय छै करतूत।
पक्षी के जोड़ी।
ओट बैठी निगोड़ी।
पांव-पंख मोड़ी।
झपकी लै घड़ी-घड़ी।
गरमी बढ़ी गेलै बड़ी।
वन-उपवन
आनन-फानन।
कुंदन कानन।
मुरझाय गेलै।
या शरमाय गेलै।
हवा-
सनसनैलो।
अचानक ऐलो।
पत्ता गेलै उड़ी।
गरमी बढ़ी गेलै बड़ी।
सुस्त भेलै।
नदी रो जलधारा।
पोखर किनारा।
प्यारा-प्यारा।
दुर्लभ नजारा।
निहारै कोय खड़ी।
गरमी बढ़ी गेलै बड़ी।
गीत-
विरहन रो प्रीत।
मन केरो मीत।
ढौरै छै भीत।
लड़ी से लड़ी।
जोड़ी हर कड़ी।
गाय छै सुन्दर खड़ी।
गरमी बढ़ी गेलै बड़ी।
रुठी गेलै।
नींद रो परी।
गरमी के दुपहरी।
तन-मन सिहरी।
झर-झर झरी।
आँख से पानी।
पूछै कानी-कानी।
सावन कैहा झड़ी।
गरमी बढ़ी गेलै बड़ी।