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गर्मियों की एक शाम / फ़्योदर त्यूत्चेव
Kavita Kosh से
अपने सिर से उतार दिया है धरती ने
दहकते सूरज के गोले को,
निगल गई हैं समुद्री लहरें
साँझ की शान्त आग को ।
निकल आए हैं उज्ज्वल तारे,
अपने आर्द्र सिरों से उन्होंने
खींच लिया है अपनी ओर
हमारे ऊपर झुकी आकाश की मेहराब को ।
धरती और आकाश के बीच
बह रहा है वायु-प्रवाह,
गरमी से राहत पा
उन्मुक्त ले रहे हैं साँस सब।
लहर-सा मधुर कम्पन
दौड़ रहा है प्रकृति की नसों में
जैसे उनके झुलसते पैरों को
झरनों का स्पर्श मिला हो ।
(1828)