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गलफर में जहर / 5 / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय
Kavita Kosh से
धोबी कहलकै गदहा सें
गाँव भैर के कपड़ा लाद दै छियौ
तैयो तोंय चलै छै मलैक-मलैक केॅ
आय तेॅ कम्मे कपड़ा छौ/तोरा देह पर।
गदहा कहलकै-
लाइद दै पूरा गाँव जवार केॅ कपड़ा
मुदा नै लादैं
ऐसन आदमी केॅ कपड़ा
जै देश केॅ नै होय सकै छै
ऊ की अपन होय सकै छै।
अनुवाद:
धोबी ने गदहा से कहा-
गाँव भर का कपड़ा लाद देते हैं
तब भी चलता है तू मलक-मलक कर
आज तो कुछ ही कपड़े हैं तेरे देह पर।
गदहे ने कहा-
लाद दे पूरा गाँव-जवार के कपड़े
किंतु मत लादना
ऐसे लोगों के कपड़े
जो देश का नहीं हो सकते
वे क्या अपना हो सकते हैं।