भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गळगचिया (22) / कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
बादळवाई रो दिन। मधरो मधरो आथूंणूं बायरो चालै। खेजड़ी उपरां बैठी कमेड़ी बोली टमरक टूं।
नीचै छयाँ में सूतो मिनख सोच्यो-किस्यो क सोवणूं पंखेरू हैै। अतै में कमेड़ी बींठ करी, सीधी आ र मिनख रै उपराँ पड़ी, मिनख झुंझळा र बोल्यो- किस्यो क बदजात जीव है।