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गळगचिया (64) / कन्हैया लाल सेठिया
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आभै रै अगूणैं पळसै स्यूँ सूरज आयो‘र आथूंणै पळसै स्यूँ बारै निकळग्यो, बडा आदम्याँ रो आणूँ ही दिन है‘र जाणूँ ही रात है।