भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ग़ज़ल / मुकेश मानस
Kavita Kosh से
इस उलझन का नहीं किनारा
उलझ गया है जीवन सारा
प्यास तुम्हारी नहीं बुझेगी
है सागर का पानी खारा
जिस पत्थर को चाहे उठालो
हर पत्थर हालात का मारा
किसको ढूँढ रहे जंगल में
यहाँ नहीं कोई तुम्हारा
2005