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ग़ज़ल गानेवाली लड़की / अरविन्द श्रीवास्तव
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ग़ज़ल गाने वाली लड़की आज फिर
तेंदुए को चकमा देकर घर लौटी है
घर का ठीक-ठीक पता किसी को नहीं है
मुख्य सड़कें नुक्कड़ में बदलती है और फिर
गलियाँ दर गलियां अंत में बिजली के खम्भे गिन कर
पहुचती है वह उस एकांत कमरे में
जहां बिखरे पड़े हैं वे पन्ने
जिसे बड़ी निहोरा कर
शायर व नज्मकारों ने थमाए थे उसे
लड़की आज फिर गज़ल गाएगी
तेंदुए को चकमा देगी
खम्भे गिन कर घर पहुंचेगी
किस्म-किस्म के
लम्बी साँसों के बावजूद !