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ग़म की ढलवान तक आये तो ख़ुशी तक पहुँचे / नवीन सी. चतुर्वेदी
Kavita Kosh से
ग़म की ढलवान तक आये तो ख़ुशी तक पहुँचे
आदमी घाट तक आये तो नदी तक पहुँचे
इश्क़ में दिल के इलाक़े से गुजरती है बहार
दर्द अहसास तक आये तो नमी तक पहुँचे
उस ने बचपन में परीजान को भेजा था ख़त
ख़त परिस्तान को पाये तो परी तक पहुँचे
उफ़ ये पहरे हैं कि हैं पिछले जनम के दुश्मन
भँवरा गुलदान तक आये तो कली तक पहुँचे
नींद में किस तरह देखेगा सहर यार मिरा
वह्म के छोर तक आये तो कड़ी तक पहुँचे
किस को फ़ुरसत है जो हर्फ़ो की हरारत समझाय
बात आसानी तक आये तो सभी तक पहुँचे
बैठे-बैठे का सफ़र सिर्फ़ है ख़्वाबों का फ़ितूर
जिस्म दरवाज़े तक आये तो गली तक पहुँचे