ग़रीब की सेहत / प्रशान्त 'बेबार'
रोज़ की सी बात है
ऐसी भी न ख़ास है
टाल वाली ईंटा भट्टी में
कच्ची ईंटा सी पीली है छगिया
जो तेरह में ब्याही गयी थी
यहाँ बँधुआ रखी गयी थी
दिन भर घाम में जान सूखती
रात में पति को कैसे रोकती
पथाई-भराई करने के बाद साँझ ढले
अपनी मिट्टी सनी धोती से
दिन भर का लपेटा सूरज झटककर
आयोडीन युक्त पसीना पोंछकर
चौधरी से सौ रुपया लेती है दिहाड़ी
चौधरी अक्सर नोट खींचकर कहता है, 'जा ऐश कर'
सूखी मुस्कान से कोयला तोड़कर
हाँफती साँसों से गर्द छोड़कर
ढाई साल के बच्चे को
कमर पे टाँग लेती है
जैसे मंडी से लौटते में
बोरी लादता है कोई
बच्चे की छाती का पिंजर
मांस छोड़ रहा है,
घेंघा हुआ लगता है
आयोडीन की कमी है,
ओह्हो, आयोडीन तो नमक में है
और नमक आँसू में,
छगिया ने लगाया हिसाब इतना
और जड़ दिया बच्चे को ज़ोर का तमाचा
छलका नन्ही जान का आँसू
होंठों के पोरों में जा पहुँचा
छगिया को थोड़ा चैन पड़ा
चलो नमक तो जा पहुँचा
फूला है पेट और सिकुड़ी है बाँह,
रखकर ज़मीन पे बच्चे को
देती है मन बहलाने को अक्सर
कूड़े से बीना अख़बार का टुकड़ा,
ख़ुद भी खींचती है चूल्हे का हल्का कोयला
बच्चा ख़ुश है खेल रहा है
अख़बार से रंग बीन रहा है
एक सेब देखकर इश्तहार में
उठा के अख़बार, रगड़ता है जीभ
छगिया खाँस के डाँट देती है
अब बच्चे को डॉक्टर की ज़रूरत नहीं है
बच्चा सब कुछ पढ़ा हुआ है
इश्तहार में लिखा हुआ है
"ऐन एप्पल अ डे, कीप्स डॉक्टर अवे!"