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ग़रीबों का होटल / अमिताभ बच्चन

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ग़रीबों के छुपे हुए होटल
अक्सर मियाँ-बीवी मिलकर चलाते हैं
मियाँ कमज़ोर नशेबाज़ अवसादग्रस्त दिखता है
बीवी ग्राहकों को चुड़ैल मालूम पड़ती है

ग़रीबों के होटल में खाने और खिलाने वाले का पसीना
कभी नहीं रुकता

हवा रोशनी कम ज़मीन कच्ची
शोर मचाते नाकारा पंखे को
लात मार गिरा देने का मन करता है

ग़रीबों के होटल में हर आदमी पूछता है
उसका गिलास कौन सा है
उसका कटोरा कहाँ चला गया

ग़रीबों के होटल में लगता है कि जैसे कोई दाल नहीं दे रहा
अपने घर की बुनियाद का पत्थर डाल रहा है


Amitabh Bachchan

 POOR FOLK’S EATERY

The out of view eateries of poor folks
Are often run by a husband-wife team
The man looks frail and morose – perhaps a drug addict
The wife appears a witch to the patrons

People who eat and serve in the poor folks’ eatery
Perspire endlessly

Little air little light unpaved floor
One feels like kicking viciously
At the noisy but utterly useless fan

In the poor folks’ eatery
Everyone asks which one is his glass
Where has his bowl disappeared

In poor folks’ eatery it appears somebody is not serving daal
But is laying the foundation stone of one’s house.

(Translation from Hindi by Asad Zaidi)