गाँधी के चेलो से / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
गाँधी के चेलो! बतलाओ बापू के अरमान कहाँ?
मेरे स्वर्णिम सपनों का है प्यारा हिन्दुस्तान कहाँ?
आज़ादी का सूरज निकला, फिर भी है अंधियारा क्यों?
सत्य-अहिंसा की धरती पर शोणित की है धारा क्यों?
आशाओं के अंतरिक्ष में छाया गहन कुहासा क्यों?
पनघट तक जाकर भी पंथी है प्यासे का प्यासा क्यों?
दुख-दर्दाे की याद भुला दे, सुख का वो सामान कहाँ?
मेरे स्वर्णिम सपनों का है प्यारा हिन्दुस्तान कहाँ?
मुट्ठी भर लोगों के घर में मनती रोज़ दिवाली क्यों?
झोपड़ियों में डेरा डाले है अब तक कंगाली क्यों?
यौवन क्यों नीलाम हो रहा, मैली अपनी गंगा क्यों?
घूम रहा सड़को पर बेबस, बचपन भूख-नंगा क्यों?
कहा गए मजबूत इरादे, वादों का है ध्यान कहाँ?
मेरे स्वर्णिम सपनों का है प्यारा हिन्दुस्तान कहाँ?
सोई पड़ी अभी तक बोलो मेहनत की तक़दीरें क्यों?
लक्ष्मी के हाथों में निर्धनता की खिंची लकीरें क्यांे?
भूख-भूख चिल्लाता खाली पेट अन्न का दाता क्यों?
फुटपाथों पर रात काटता महलों का निर्माता क्यों?
न्याय-नीति की जीत कहाँ है, श्रम का है सम्मान कहाँ?
मेरे स्वर्णिम सपनों का है प्यारा हिन्दुस्तान कहाँ?
ठाठ कहीं पर, नहीं कहीं पर तन ढँकने की क्षमता क्यों?
मानव-मानव के जीवन में इतनी घोर विषमता क्यों?
कहीं थिरकतीं ख़ुशियाँ दुख के घिरे कहीं घन काले क्यों?
कहीं छलकते जाम, कहीं पर हैं रोटी के लाले क्यों?
कर्ज़दार हो गया देश, अब रही निराली शान कहाँ?
मेरे स्वर्णिम सपनों का है प्यारा हिन्दुस्तान कहाँ?
होता क्यों अभिषेक झूठ का, अपमानित सच्चाई क्यों?
फूलों के घर में मातम है, काँटों के शहनाई क्यो?
है कोई रंगीन ज़िन्दगी कठिन किसी का जीना क्यो?
पूंजी के हाथों पिटताहै, पीड़ित रोज़ पसीना क्यों?
छल-बल की पूजा होती है, निर्बल का है मान कहाँ?
मेरे स्वर्णिम सपनों का है प्यारा हिन्दुस्तान कहाँ?
करे न्याय की मांग, उसे मिलती है लाठी, गोली क्यों?
लूट मचाती घूम रही है बटमारों की टोली क्यों?
सुरसा-सी बढ़ रही रोज़ भुखमरी ओर बेकारी क्यांे?
मौज उड़ाते मनमानी, भ्रष्टाचारी दरबारी क्यों?
लुप्त हो गई भोली जनता के मुख की मुस्कान कहाँ?
मेरे स्वर्णिम सपनों का है प्यारा हिन्दुस्तान कहाँ?
घिरा हुआ पतझर से सारा अपना ये उपवन है क्यों?
राष्ट्रपिता के आदर्शों का होता आज हनन क्यों?
सिंहासन के लिए अनेकों ढोंग रचाए जाते क्यों?
मानवता की चिता जलाकर जश्न मनाए जाते क्यों?
कहाँ गई वह भक्ति-भावना, त्याग और बलिदान कहाँ?
मेरे स्वर्णिम सपनों का है प्यारा हिन्दुस्तान कहाँ?
पूछ रहा हूँ लोकतंत्र के मैं उन पहरेदारों से,
कब होगा यह देश मुक्त पापों से, स्वेच्छाचारो से?
भारत की इस वसुधा पर ऐसा वसन्त कब आएगा?
जब स्वदेश के नन्दन-वन का सुमन-सुमन मुस्काएगा।
अमर शहीदों की गाथा का अब है गौरवगान कहाँ?
मेरे स्वर्णिम सपनों का है प्यारा हिन्दुस्तान कहाँ?