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गाँव की गलियाँ / संतोष अलेक्स
Kavita Kosh से
यहाँ से गुजरना
मात्र रास्ता तय करना नहीं होता
यहाँ के लोगों की ज़िंदगी को
समझना भी होता है
गाँव की गली में
कहीं जुबैर की माँ
पोते का दांत मंजवाती हुई दिखती
कहीं सोहन दूध लेकर लौटा है
गोबर से पोते गए
दीवार की तरफ से गुजरते
अपरिचित के इर्द - गिर्द
घूमता है जबरू कुत्ता
रसोई के पास लेटी है
कबरी बिल्ली
खेत से तुरंत लाई गई
तोरी और लौकी
हमसे बतियाते
तुरंत बना लो सब्जी
आंगन से उठते चुल्हे के
धुएँ की सोंधी खुश्बू
गाय की रेकन
तुलसी चौरा
निर्मलता है गाँव की
इन घटनाओं में
गाँव की नीरवता इतनी कि
दूर हैंड पंप चलाने की आवाज
सुनाई देती है
गांव की गलियाँ
मात्र गलियाँ नहीं हैं
अनकहे बहुत कुछ कह जाती है