भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गाँव में शरद / नन्दकिशोर नवल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शरद गेह ज्योत्सना से लीप गया ।
ठाँव-ठाँव सजा स्वर्ण-दीप गया ।
धानों पर चमकी छितरा गई ।
सरसों की चूनरी रंगा गई ।
सनई की किंकिणियाँ बोल उठीं ।
हवा गन्ध मधुर-मधुर घोल उठी।