गांधारी / मोनिका गौड़
गांधारी,
म्हैं समझणी चावूं
थांरी आंख्यां री पाटी
थांरै सतवंती होवण रै
भारी ताज हेठै
बुसबुसाईजतै काळजियै री पीड़
गांधारी,
म्हैं समझूं थांनै इण भांत
कै जद भरी सभा थे धिक्कारियो
कूख-जायां साथै
जलमांध धृतराष्ट्र अर
राजमोह रै कूड़ में
सूझती आंख्यां आंधै भीसम नैं
उण बगत न्हाखी ही थे धूड़
सगळी मरदजात
अर उणरी सत्ता माथै
थे द्रोपदी सूं बेसी
बचावणी चांवता हा लुगाईजात नैं
लुगाई, जकी सत्ता री चौसर में
पीट्योड़ै प्यादै सूं बेसी
कदर नीं राखै
उण भरी सभा में
गांधारी नीं बोली ही
अेक स्त्री री चेतना
अर मनगत री चिरळाट्यां ही
उणरै अैहिक-दैहिक अेकलापै सूं उपजी
कुरळाट ही।
गांधारी,
थे नईं हा महाराणी या राजमाता
थे हा फगत स्त्री
जकी नैं माडाणी
राज रै खेल में अडाणै राखणी पड़ी
आपरी अस्मिता
सोनलिया सुपना
आपरी ओळखाण
आपरो नांव,
थांरी आंख्यां री पाटी
ना इंद्रियां नैं जीतणो हो
ना मानूं म्हैं पतिधरम री पाळणा
थे कर्यो
आपरी पूंच सारू प्रतिकार
ओ विद्रोह हो
सगळी मरद-सत्ता अर राज सूं
जको हरमेस
ढकतो आयो
आपरै स्वारथ, फायदै अर भौ नैं
मुखमलिया परदां सूं
रचतो आयो
नूंवा-नूंवा ढब-ढोंग
लुगाईजात नैं रिगदोळण
मनचींती करण,
उणरी खिमता अर ओज नैं चींथण रा।
सत-पत री कूड़ी आरतियां
संख-नगाड़ा-झालरां सूं
देवी थरपण री कोसिस
नईं मानणी चावै मिनख
पण गांधारी
प्रतिकार में पलायन री ठौड़
पग जमा’र
साम्हीं हुय जावता
मूंडै अर आंख्यां री पाटी
नीं राखता
तो स्यात
नीं हुवतो महाभारत
नीं पड़ती परंपरा
पग-पग
द्रोपदी नैं दांव लगावणै री।
गांधारी,
म्हैं समझूं थांनै
सईकां बाद
मानखै रै रूप में।