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गांव एक गंध का नाम है / सुरेश विमल

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गांव
नाम है
महुए के महकते हुए
पेड़ का...

बबूल पर
फिसलती हुई चांदनी
और रेत पर झरते हुए
नीम के बौर का
नाम है गांव...

गांव
नाम है उस गंध का
जो ताज़ा लिपे आंगन के
आकाश में विहरती है
बौराई सी...

गांव
उस गौरेया का नाम है
जो सुबह से शाम तक
तलाशती है चुग्गा
खेत दर खेत...

गांव नाम है उस औरत का
जो माथे पर घास का गट्ठर
और गोद में शिशु को उठाए
रौंदती हुई चलती है
नंगे पांव
कंटीली पगडंडियाँ...

गांव
उस बालक का नाम है
जो खट्टे बेरों को
दाढ़ो के बीच दबाए
मुस्कराता है
डबडबाई आंखों से...

गांव
नाम है जौ-ज्वार की
उन सूखी रोटियों के
स्वाद का
खेत की मेड़ पर
चबाता है जिनको
कच्चे प्याज के संग किसान...

गांव
बिटौरों पर उत्कीर्ण
हाथी, कमल और चिड़िया के
अनगढ़ चित्रों का नाम है...

छप्पर से झूलती हुई
कच्ची लौकी
और मकई के
दूधिया दानों का नाम है गांव...

गांव
नाम है उस गीत का
पानी की सारंगी पर
अलापता है जिसे
रहट का जोगी...

खिलखिलाती हुई
सरसों की फुनगियों
पोखर में सरसराती
नन्ही-नन्ही मछलियों के बिंबों
और मोरों के
थिरकते हुए
इंद्रधनुषी पंखों का नाम है
गांव।