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गाए चली जा रही है / केदारनाथ अग्रवाल

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स्विच ‘आन’ है रेडियो का
पनवाड़ी की दुकान में
गाए चली जा रही है कोई कमीन
तवायफ,
मुझे हो रहा है कुछ ऐसा प्रतीत
बम्बई से ही चला आ रहा है
नितांत नंगी जंघाओं का सरित-संगीत
न जाने अब कब
होगा बन्द
यह अश्लील व्यभिचार
दूर से भी बहुत दूर है यहाँ से
पुलिस की चौकी।

रचनाकाल: २५-१२-१९६१