भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गाजरघास / लीलाधर मंडलोई
Kavita Kosh से
तुमसे फिर वही दुष्टता हुई
तुम्हारा सच कच्चे रबर सा बेलगाम
कीर्ति-कलम को उत्सुक
भाग रहे हो नीले घोड़े पर सवार
बिक रहे हों जब पुरस्कार के लिए मित्र
बिके एक लेखक भी यश के एवज
रचो कुछ और गाजरघास-शुभकामनाएँ
एक अक्षम्य कृत्य कर रहा है उपभोक्ता बाजार
करो! न करो मुआफ
तुम्हें गरियाने की यह बदमस्ती तो होगी