भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गाड़ी तेज चलाबै छै / दिनेश बाबा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

धुईंयां खूब उड़ाबै काकी
ताँकुल जबै चढ़ावै काकी
बकरी चरबै हाता में
ओढ़ी करी केॅ छाता में
धूप बड़ी कड़कड़िया छै
बेटा गेलोॅ खगड़िया छै
गाड़ी तेज चलाबै छै
दिल होकरोॅ धड़काबै छै
पता नैं की खैतोॅ थाना
धरकै पिछला बेर दरोगां
फाईन करकै ढेर दरोगां
लगलै फाईन तीन हजार
तैय्यो जाय छै रोज बजार