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गामऽ में / कुंदन अमिताभ
Kavita Kosh से
मंजर-मंजर गाछी के झरतें होतै
फलऽ के आश मन कोखी में पलतें होतै।
घमा घमजोर देहऽ के रग टुटी रहलऽ छै
बडुआ नदी के कलकल नजरऽ में ऐतें होतै।
साँझ दै वाला दीया के बरती छोटऽ भेॅ गेलै
डिबिया नेसै के चेष्टा जोर पकड़तें होतै।
चक्का डुबथैं बस्ती अन्हारऽ में डुबी गेलै
भोर लानै लेॅ सभ्भे जिदियैलऽ होतै।
अन्धर ऐथैं मुन्हऽ घरऽ के उजड़ेॅ लागलै
बचलऽ मुन्हा केरऽ चरचा सगर होतें होतै।