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गाय बेच हम आये / संजीव 'शशि'

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गौमाता कह-कह कर हमने,
चरणों शीश नवाये।
फिर क्यों गाय बेच हम आये ?

सागर के मंथन से निकलीं वह,
कामधेनु कहलायीं।
जन-जन की वह पूज्या होकर,
ऋषियों के मन भायीं।
जिसके अंग-अंग में आकर,
अगनित देव समाये।

यशुदा नंदन किशन कन्हैया,
माखन के मतवाले।
अगनित गैयाँ नंद बबा की,
वह उनके रखवाले।
गौसेवा करके मनमोहन,
हैं गोपाल कहाये।

दूध, दही, माखन देकर भी,
हम से क्या है पाया।
वृद्ध हुईं जब गौमाता तब,
हमने है बिसराया।
चिल्लाये फिर गली-गली हम,
गौहत्या रुक जाये।